हिंदीग़ज़ल

नज़र अपनी-अपनी बदल कर के देखे

नज़र अपनी-अपनी बदल कर के देखे चलो अपने बिल से निकल कर के देखे अगर मिलनी होगी तो मंज़िल मिलेगी मगर पहले घर से निकल कर के देखे ग़मे-हिज्र की कोई औक़ात है क्या? कोई अपना सपना कुचल कर के देखे! अगर चाँद चाहता है खुद का उजाला तो सूरज के जैसे वो जल कर के देखे जहाँ उलझनों में नफ़ा ही नफ़ा है वहाँ कौन उलझन को हल कर के देखे! कठिन होना सबसे है आसान यारों है हिम्मत तो खुद को सरल कर के देखे मुताबिक़ ज़माने के मैं ढल न पाया ज़माना ही थोड़ा-सा ढल कर के देखे भरोसे मुक़द्दर के बैठे रहे जो भरोसे मुक़द्दर के चल कर के देखे बहुत अच्छी बातें तू करता है ‘अंकुर’ मज़ा तब है जब तू अमल कर के देखे