हिंदीग़ज़ल
मैं भी चुप, वो भी चुप।
• Sushant Jain
दिल तक पहुँचेंगी खामोशी, मैं भी चुप, वो भी चुप। अब तफ़सील से बातें होगी, मैं भी चुप, वो भी चुप। हमने मिलकर ठाना था जो कुछ हो सच बोलेंगे। जब कहने की बारी आई, मैं भी चुप, वो भी चुप। चुप रहना है नामुमकिन, लेकिन फिर भी सब चुप है शोषक चुप है, चुप शोषित भी, मैं भी चुप, वो भी चुप इस पर क्यूँ बोलूँ इसमें तो मेरा क्या जाता है। जब सब ने है सोचा ये ही, मैं भी चुप, वो भी चुप फिर ‘अंकुर’ ने महफ़िल में अपना क़िस्सा बतलाया बर्बादी की दास्ताँ ऐसी, मैं भी चुप, वो भी चुप।