हिंदीग़ज़ल

जीवन भर वनवास रहा

जीवन भर वनवास रहा फिर भी ना अहसास रहा यूँ ही ना बर्बाद हुए इसका इक इतिहास रहा चेहरे पे मुस्कान रही मन कुछ सोच उदास रहा दिल का कैसे ज़ख़्म भरूँ दिल कब मेरे पास रहा ‘अंकुर’ ज़िंदा है शायद/जग में लोगों को विश्वास रहा